मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै।
हीरा पायो गाँठ गँठियायो, बार-बार वाको क्यों खोलै।
हलकी थी तब चढी तराजू, पूरी भई तब क्यों तोलै।
सुरत कलाली भई मतवाली, मधवा पी गई बिन तोले।
हंसा पायो मानसरोवर, ताल तलैया क्यों डोलै।
तेरा साहब है घर माँहीं बाहर नैना क्यों खोलै।
कहै 'कबीर सुनो भई साधो, साहब मिल गए तिल ओलै॥
हीरा पायो गाँठ गँठियायो, बार-बार वाको क्यों खोलै।
हलकी थी तब चढी तराजू, पूरी भई तब क्यों तोलै।
सुरत कलाली भई मतवाली, मधवा पी गई बिन तोले।
हंसा पायो मानसरोवर, ताल तलैया क्यों डोलै।
तेरा साहब है घर माँहीं बाहर नैना क्यों खोलै।
कहै 'कबीर सुनो भई साधो, साहब मिल गए तिल ओलै॥
मन मस्त असेल तर काय बोलायचे ?(उत्कट आनंदात असताना का बोलायचे? )
हिरा मिळाला ; कनवटीला बांधला वारंवार उघडून काय बघायचे?
हलकी असताना तराजु चढवली ; तागडे जमिनीला टेकल्यावर काय तोलायचे?
संध्याकाळी मधुशाला पूर्णपणे उघडी असताना मद्य मापून का प्यायचे?
हंस मानस सरोवर मिळाल्यावर तळी डबक्यान जवळ का डोलेल ?
तुझा साहेब तुझ्या (हृदयात ) असताना बाहेर कशासाठी शोधतोस ?
कबीर म्हणतो ऐक साधका डोळ्यातली धूळ काढल्यावर परमेश्वर सगळीकडे दिसेल !
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