Friday, October 30, 2015

करोगे याद तो हर बात याद आयेगी-बशर नवाज़


करोगे याद तो हर बात याद आयेगी

गुजरते वक्त की, हर मौज ठहर जायेगी


ये चाँद बीते जमानो का आईना होगा

भटकते अब्र में चेहरा कोई बना होगा

उदास राह कोई दास्तां सुनाएगी


बरसता भीगता मौसम धुआँ धुआँ होगा

पिघलती शम्मो पे दिल का मेरे गुमा होगा

हथेलियों की हिना याद कुछ दिलायेगी


गली के मोड़ पे सूना सा कोई दरवाजा

तरसती आँखों से रस्ता किसी का देखेगा

निगाह दूर तलक जा के लौट आयेगी


फिल्म-बाज़ार...1982..
गायक-भूपेन्द्र...
गीत-बशर नवाज़...
संगीत-खय्याम


oooooooooooooooooooooooooo


आठवशील तर प्रत्येक गोष्ट आठवत जाईल

चाललेल्या काळातील प्रत्येक मौज थांबून जाईल ……


हा चंद्र  हरवलेल्या भूतकाळाचा आरसा असेल

विहरणाऱ्या ढगांमध्ये कोणाचा तरी चेहरा दिसत असेल

उदास रस्ता एखादी कहाणी ऐकवेल…..


पाऊसाने भिजवणारा मौसम धूर धूर होईल

ए खाद्या  वितळ नार्या  मेणबत्ती वर  माझे हृदय जळून जात असेल

हातावर असलेले अत्तर एखादी आठवण सांगून जाईल …..


गल्लीच्या वळणावरचा एखादा रिकामा दरवाजा

पाणावलेल्या डोळ्यांनी कोणाचीतरी वाट पाहत असेल

नजर दूरवर जाऊन परत येईल….

Monday, October 19, 2015

हज़ार राहें मुड़ के देखी-गुलज़ार



हज़ार राहें मुड़ के देखी, कहीं से कोई सदा ना आई 
बड़ी वफ़ा से निभाई तुमने, हमारी थोड़ी सी बेवफ़ाई

जहाँ से तुम मोड़ मुड़ गये थे, ये मोड़ अब भी वही पड़े हैं
हम अपने पैरों में जाने कितने भंवर लपेटे हुये खड़े हैं

कहीं किसी रोज यूँ भी होता, हमारी हालत तुम्हारी होती
जो रात हम ने गुज़ारी मर के, वो रात तुम ने गुज़ारी होती

तुम्हें ये ज़िद थी के हम बुलाते, हमें ये उम्मीद वो पुकारे
है नाम होठों पे अब भी लेकिन, आवाज़ में पड़ गई दरारें
गीतकार : गुलज़ार, गायक : लता - किशोर, संगीतकार : खय्याम, चित्रपट : थोडीसी बेवफ़ाई (१९८०)

ओझरती दिसलिस आणि माज़ी शुद्ध  पुर्ण घालवलिस
मला  तुझ्यापासून वेगळ करुन् टाकलस।

 
माझ्यासाठी आयुष्यभर प्रार्थना करत गेलीस
आम्ही स्वतचा अधपात् करण्याचा हक्क बजावत गेलो।

 मी तुजी अशी प्रार्थना  आणि स्तुती करत राहिलो
की लोकांच्या नजरेतून तुला देवत्व प्राप्त जाले।

 तुझ्या जवळ यावे अशी  ओढ़ खूप होती
  मात्र तुझे जाणे मला रक्तबंबाळ करुंन गेले।


दिखाई दिए यूं के बेखुद किया-मीर तकी मीर



दिखाई दिए यूं के बेखुद किया
हमे आप से भी जुदा कर चले

जबीं सजदा करते ही करते गई
हक़-ए-बंदगी हम अदा कर चले

परस्तिश किया तक के ऐ बुत तुझे
नजर में सबो की खुदा कर चले

बहोत आरजू थी गली की तेरी
सो या से लहू में नहा कर चले

गीतकार : मीर तकी मीर, गायक : लता मंगेशकर, संगीतकार : खय्याम, चित्रपट : बाज़ार (१९८२) 




Thursday, October 1, 2015

मन क्यों बहका- वसंत देव



मन क्यों बहका री बहका, आधी रात को
बेला महका री महका, आधी रात को
किस ने बन्सी बजाई, आधी रात को
जिस ने पलकी चुराई, आधी रात को

झांझर झमके सुन झमके, आधी रात को
उसको टोको ना रोको, रोको ना टोको, टोको ना रोको, आधी रात को
लाज लागे री लागे, आधी रात को
देना सिंदूर क्यों सोऊँ आधी रात को

बात कहते बने क्या, आधी रात को
आँख खोलेगी बात, आधी रात को
हम ने पी चाँदनी, आधी रात को
चाँद आँखों में आया, आधी रात को

रात गुनती रहेगी, आधी बात को
आधी बातों की पीर, आधी रात को
बात पूरी हो कैसे, आधी रात को
रात होती शुरू हैं, आधी रात को
गीतकार : वसंत देव, गायक : आशा भोसले - लता मंगेशकर, संगीतकार : लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, चित्रपट : उत्सव (१९८४)

साँझ ढ़ले, गगन तले हम कितने एकाकी- वसंत देव


साँझ ढले, गगन तले हम कितने एकाकी
छोड़ चले, नैनों को किरणों के पाखी

पाती की जाली से झांक रही थी कलियाँ
गंध भरे गुनगुन में, मगन हुयी थी कलियाँ
इतने में तिमीर धसा सपनीले नैनो में
कलियों के आंसू का कोई नहीं साथी

जुगनू का पट ओढ़े आयेगी रात अभी
निशीगंधा के सुर में कह देगी बात सभी
तपता है मन जैसे डाली अंबुवा की
गीतकार : वसंत देव, गायक : सुरेश वाडकर, संगीतकार : लक्ष्मीकांत प्यारेलाल, चित्रपट : उत्सव (१९८४) /