हज़ार राहें मुड़ के देखी, कहीं से कोई सदा ना आई
बड़ी वफ़ा से निभाई तुमने, हमारी थोड़ी सी बेवफ़ाई
जहाँ से तुम मोड़ मुड़ गये थे, ये मोड़ अब भी वही पड़े हैं
हम अपने पैरों में जाने कितने भंवर लपेटे हुये खड़े हैं
कहीं किसी रोज यूँ भी होता, हमारी हालत तुम्हारी होती
जो रात हम ने गुज़ारी मर के, वो रात तुम ने गुज़ारी होती
तुम्हें ये ज़िद थी के हम बुलाते, हमें ये उम्मीद वो पुकारे
है नाम होठों पे अब भी लेकिन, आवाज़ में पड़ गई दरारें
गीतकार : गुलज़ार, गायक : लता - किशोर, संगीतकार : खय्याम, चित्रपट : थोडीसी बेवफ़ाई (१९८०)
ओझरती दिसलिस आणि माज़ी शुद्ध पुर्ण घालवलिस
मला तुझ्यापासून वेगळ करुन् टाकलस।
माझ्यासाठी आयुष्यभर प्रार्थना करत गेलीस
आम्ही स्वतचा अधपात् करण्याचा हक्क बजावत गेलो।
मी तुजी अशी प्रार्थना आणि स्तुती करत राहिलो
की लोकांच्या नजरेतून तुला देवत्व प्राप्त जाले।
तुझ्या जवळ यावे अशी ओढ़ खूप होती
मात्र तुझे जाणे मला रक्तबंबाळ करुंन गेले।
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